संकल्प विधि व मंत्र
संकल्प का अर्थ
संकल्प विधि व मंत्र
संकल्प का अर्थ है किसी अच्छी बात को करने का दृढ निश्चय करना। सनातन धर्म में किसी
भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान या जाप करने से पहले संकल्प करना अति आवश्यक होता है, और
बिना संकल्प विधि के शास्त्रों में पूजा अधूरी मानी गयी है। मान्यता है कि संकल्प के बिना की गई
पूजा का सारा फल इन्द्र देव को मिल जाता है। इसलिए पहले संकल्प लेना चाहिए, फिर
पूजन करना चाहिए। संकल्प लेने का अर्थ संकल्प लेने का अर्थ यह है कि हम इष्टदेव और
स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लें कि यह पूजन कर्म विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति के लिए कर
रहे हैं और इस संकल्प को पूरा जरूर करेंगे। संकल्प विधि मंत्रो सहित या फिर जैसे आपको आता हो |
अपने भाव से अपने ज्ञान के अनुसार कर सकते है।
संकल्प विधि
संकल्प लेते समय हाथ में जल लिया जाता है। श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया
जाता है ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूरा हो जाए। इस परंपरा से
हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। अतः व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का
साहस प्राप्त होता है।
संकल्प का महत्त्व अतः घर की सुख-समृद्धि और शांति बनाए रखने के लिए पूजा-पाठ की जाती है।
पूजा किसी भी देवी-देवता की हो, सबसे पहले संकल्प लिया जाता है। पूजा विधि का ये भी एक
अनिवार्य कर्म है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार सही तरीके से पूजा-पाठ
किया जाता है तो उसका फल जल्दी मिल सकता है। इसीलिए विशेष उद्देश्य के लिए की जाने
वाली पूजा में किसी ब्राह्मण की मदद ली जाती है।
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इष्टदेव को साक्षी मानकर लें संकल्प
इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लिया जाता है कि हम ये पूजन कर्म विभिन्न मनोकामनाओं
की पूर्ति के लिए कर रहे हैं और इस पूजन को पूर्ण अवश्य करेंगे।
संकल्प लेते समय हाथ में जल लिया जाता है, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के पंचतत्व अग्रि, पृथ्वी,
आकाश, वायु और जल में भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। इसीलिए प्रथम पूज्य श्रीगणेश को
सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूर्ण हो
सके। एक बार पूजन का संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा जरूर करना चाहिए।
इस कर्म से हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। विपरित परिस्थितियों का सामना करने
का साहस प्राप्त होता है और पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है, जिससे हमारी मनोकामनाएं जल्दी पूरी हो
सकती हैं।
संकल्प मंत्र
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: । श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्यैतस्य
ब्रह्मणोह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे
कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य ………… क्षेत्रे
………… मण्डलान्तरगते ………… नाम्निनगरे (ग्रामे वा) श्रीगड़्गायाः ………… (उत्तरे/दक्षिणे)
दिग्भागे देवब्राह्मणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्यसमयतः ……… संख्या -परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे
प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ………… नामसंवत्सरे, ………… अयने, ………… ऋतौ, ………… मासे
, ………… पक्षे, ………… तिथौ, ………… वासरे, ………… नक्षत्रे, ………… योगे, ………… करणे, …………
राशिस्थिते चन्द्रे, ………… राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ………… देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु
एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ………… गोत्रोत्पन्नस्य ………… शर्मण: (वर्मण:, गुप्तस्य वा)
सपरिवारस्य ममात्मन: श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-पुण्य-फलावाप्त्यर्थं ममऐश्वर्याभिः वृद्धयर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं
प्राप्त लक्ष्म्याश्चिरकाल संरक्षणार्थं सकलमनः – इप्सितकामना संसिद्धयर्थं लोके वा सभायां राजद्वारे वा सर्वत्र
यशोविजयलाभादि प्राप्त्यर्थं समस्त-भय-व्याधि-जरा-पीडा-मृत्यु परिहारद्वारा आयुरारोग्यैश्वर्याद्यभिवृद्धर्थं तथा
च मम जन्मराशे: साकाशाद्ये केचिद्विरुद्ध-चतुर्थाष्टम-द्वादश-स्थानस्थिता: क्रूरग्रहा: तै: संसूचितं सूचयिष्यमाणञ्च
यत्सर्वारिष्टं तद्विनाशद्वारा सर्वदा तृतीयैकादश-स्थान-स्थितवच्छुभ-फल-प्राप्त्यर्थं पुत्र-पौत्रदि- सन्ततेरविच्छिन्न
वृद्धयर्थम्! आदित्यादिन्नवग्रहानूकूलता-सिद्धयर्थं इन्द्रादि -दशदिक्पाल-प्रसन्नता-सिद्धयर्थम्। आधिदैविक-
आधिभौतिक-आध्यात्मिका-त्रिविधतापोपशमनार्थं धर्मार्थ-काम-मोक्ष-फलावाप्त्यर्थं यथा-ज्ञानं यथा-
मिलितोपचारद्रव्यै: ………… देवस्य पूजनं/पाठं/…….मन्त्रं ……. संख्याकं जपं करिष्ये।